सहाबी ख़ब्बाब (रज़ि.) की आज़माइशें

सहाबी ख़ब्बाब (रज़ि.) की आज़माइशें

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
(अल्लाह दयावान, कृपाशील के नाम से)

प्रिय दर्शको,

आज की इस प्रस्तुति का शीर्षक है ‘सहाबी ख़ब्बाब (रज़ि.) की आज़माइशें’। हज़रत ख़ब्बाब (रज़ि.) उम्मे-अन्मार के ग़ुलाम थे। उस ज़माने में महिलाएँ भी बहुत सशक्त होती थीं। आज की तरह उनको दबाकर नहीं रखा गया था। महिलाएँ जंगों में हिस्सा लेती थीं, व्यापार करती थीं। जैसा कि आप जानते हैं कि उम्मुल-मोमिनीन हज़रत ख़दीजा (रज़ि.) भी बहुत बड़ी व्यापारी महिला थीं। संभवः उस समय मक्का में उनकी टक्कर का कोई व्यापारी नहीं था। इसी प्रकार उम्मे-अन्मार भी बहुत सशक्त महिला थीं। इस्लाम स्वीकार करने के अपराध में वे अपने ग़ुलाम ख़ब्बाब (रज़ि.) को लोहे की गर्म छड़ से दाग़ देतीं और तरह-तरह से अत्याचार करतीं। कभी-कभी वह कोयले दहकाती और उसपर हज़रत ख़ब्बाब (रज़ि.) चित लिटा देती, और तब तक लिटाए रखती जब तक कोयले ठंडे न हो जाते। बाद के ज़माने में जब इस्लाम को वर्चस्व प्राप्त हो गया, उन्होंने अपनी पीठ पर से कपड़ा उठाकर अपने कुछ साथियों को दिखाया। उनकी सारी पीठ पर कोयलों से जलाए जाने का कारण सफ़ेद दाग़ पड़ गए थे। मगर इस्लाम की ख़ातिर उन्होंने ये सारे कष्ट सहन किए।

नबी करीम (सल्ल.) ने हज़रत ख़ब्बाब (रज़ि.) को इस मुसीबत में ग्रस्त देखा तो दुआ की, “या अल्लाह, ख़ब्बाब की मदद कर।” आप (सल्ल.) ख़ुद कुछ करने की स्थिति में नहीं थे। जब इंसान ख़ुद कुछ नहीं कर सकता तो बस अल्लाह पर भरोसा करता है। ऐसे में वह दुआ करने के अलावा और कर भी क्या सकता है, और ज़ालिमों के लिए बददुआ करने के अलावा और कर भी क्या सकता है।

“उसके बड़े नसीब जिसे आज़माए दोस्त”। शेअर के इस टुकड़े में अल्लाह तआला को दोस्त कहा गया है। और सचमुच में जो अल्लाह के दोस्त हैं, अल्लाह उनकी मदद करता है, अल्लाह उन्हें सब्र और जमाव प्रदान करता है, अल्लाह तआला उनके साथ होता है।

दुश्मनों के अत्याचारों के कारण जब अल्लाह के रसूल (सल्ल.) सौर नामक गुफा में छिपे हुए थे, (और दुश्मन उन्हें क़त्ल करने के लिए ढूँढ़ रहे थे) उस समय हज़रत अबू-बक्र (रज़ि.) भी आपके साथ थे, जब उन्हें कुछ घबराहट हुई कि कहीं दुश्मन उन तक पहुँच न जाएँ, तो आप (सल्ल.) ने उन्हें यह कहते हुए ढारस बँधाई कि “दुखी मत हो, अल्लाह हमारे साथ है।” इसका उल्लेख क़ुरआन में भी किया गया है—

لَاتَحْزَن اِنَّ اللہَ مَعَنَا
और इसके बाद कहा गया, “हमने उन लश्करों के द्वारा उनकी मदद की जो लोगों को दिखाई न देते हैं।” (क़ुरआन, 9/40) और वे लश्कर होते हैं, सब्र और जमाव के लश्कर होते हैं, हिम्मत के लश्कर होते हैं, आत्म विश्वास और ख़ुदा पर विश्वास के लश्कर होते हैं।

यह भी एक अजीब संयोग था कि उम्मे-अन्मार, जो हज़रत अम्मार (रज़ि.) को लोहे की गर्म सलाख़ों से दाग़ा करती थी, एक ऐसे असाध्य रोग में ग्रस्त हो गई, जिसके इलाज के लिए इलाज करनेवाले उसे गर्म-गर्म लोहे की सलाख़ों से दाग़ते थे।

आज भी हम दुनिया में देखते हैं कि आज के फ़िरऔन और शद्दाद जैसे लोगों का क्या बुरा अंजाम होता है। पड़ोसी देश के एक प्रधान मंत्री का क्या अंजाम हुआ? एक देश को जिसने तोड़ा उसका बांग्ला देश में क्या अंजाम हुआ? ईरान का बादशाह, क़ारिया मेहरर, (क़ारियों का सूरज) उसका क्या अंजाम हुआ? ज़मीन में उसको कहीं पनाह नहीं मिली। अमेरिका जो उसका दोस्त और संरक्षक था, उसने भी उसको अपने यहाँ शरण देने से मना कर दिया। आख़िरकार मिस्र के उस समय के शासकों को उसपर दया आई। उन्होंने उसको पनाह दी। उसकी पत्नी अब तक जीवित है, जो छोटे से घर में अपने बाक़ी दिन गुज़ार रही है, उसे कुछ मासिक रक़म के साथ एक सेविका दे दी गई है।

यह सब देखकर भी आज के अत्याचारी शासक सबक़ नहीं लेते। ठीक कहा था अकबर इलाहाबादी ने—

जो एयरशिप पे चढ़े तो हमीं हैं, ख़ुदा नहीं है
जो एयरशिप से गिरे तो लाश का भी पता नहीं है

सबको एक दिन मरना है, सबको अल्लाह के सामने जाना है, अतः हिम्मत के साथ, ख़ुदा पर विश्वास के साथ, प्रेम के साथ बन्दों को अल्लाह की ओर बुलाते रहिए। इंशाअल्लाह, ऐसे तमाम लोग कामयाब होंगे। “ऐ रब, हमारी मदद कर, हमें सब्र प्रदान कर।”

سُبْحَانَ رَبِّكَ رَبِّ الْعِزَّةِ عَمَّا يَصِفُونَ وَسَلَامٌ عَلَى الْمُرْسَلِينَ وَالْحَمْدُ لِلّٰہِ رَبِّ الْعَالَمِينَ

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