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‘बिना संतान मुस्लिम विधवा का पति की संपत्ति में एक- चौथाई हिस्से का अधिकार..’- सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला चांद खान नामक व्यक्ति के मामले में सुनाया. चांद खान का निधन बिना वसीयत और एक भी बच्चा नहीं हुए ही हो गया था. चांद खान की मौत के बाद उनकी विधवा ज़ोहरबी ने पति के संपत्ति के तीन-चौथाई हिस्से पर अपना हक जताया था.

Supreme Court On Muslim Widow Case: सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि मुस्लिम विधवा के कोई बच्चें नहीं हैं तो वो पति की संपत्ति में केवल एक चौथाई हिस्सेदारी पाने की हकदार है. सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा, जिसमें एक मुस्लिम विधवा को उसके मृत पति की संपत्ति में तीन चौथाई हिस्सा देने से इनकार कर दिया गया था.

क्या है पूरा मामला?

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला चांद खान नामक व्यक्ति के मामले में सुनाया. चांद खान का निधन बिना वसीयत और एक भी बच्चा नहीं हुए ही हो गया था. चांद खान की मौत के बाद उनकी विधवा ज़ोहरबी ने पति के संपत्ति के तीन-चौथाई हिस्से पर अपना हक जताया था. ज़ोहरबी ने तर्क दिया कि मुस्लिम कानून के तहत वह मुख्य वारिस है.

मृतक के भाई ने क्या दलील दी?

वहीं, मृतक चांद खान के भाई ने इस दावे पर दलील दी कि चांद खान ने अपने जीवनकाल में संपत्ति का एक हिस्सा एक बिक्री समझौते के माध्यम से पहले ही ट्रांसफर कर दिया था, इसलिए वह हिस्सा विरासत में नहीं आ सकता.

ट्रायल कोर्ट ने मृतक के भाई की इस दलील को मान लिया, लेकिन अपीलीय अदालत और बाद में बॉम्बे हाई कोर्ट ने उस फैसले को पलटते हुए कहा कि सिर्फ विक्रय समझौते से किसी को मालिकाना हक नहीं मिलता, और न ही इससे संपत्ति का ट्रांसफर होता है.

ज़ोहरबी तीन चौथाई हिस्से का दावा करते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंची

इसके बाद ज़ोहरबी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए पति के संपत्ति का तीन चौथाई हिस्से का दावा किया. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट की धारा 54 के अनुसार, केवल बिक्री का समझौता करने से अचल संपत्ति का मालिकाना हक नहीं मिलता. चूंकि इस मामले में कोई रजिस्टर्ड सेल डीड नहीं तैयार नहीं की गई थी, इसलिए मृत व्यक्ति की मृत्यु तक संपत्ति उसी के नाम पर बनी रही. इस कारण, वह संपत्ति मतरूक संपत्ति मानी जाएगी, यानी मृतक द्वारा छोड़ी गई संपत्ति कानूनी वारिसों में बांटना था.

सुप्रीम कोर्ट ने कुरआन का दिया हवाला

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय करोल और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की बेंच ने कहा कि क़ुरआन के अध्याय IV, आयत 12 के अनुसार, अगर पति की कोई संतान या वंशज नहीं है, तो उसकी विधवा को उसकी संपत्ति में से एक-चौथाई हिस्सा मिलता है. वहीं अगर संतान हो, तो विधवा को सिर्फ एक- आठवां हिस्सा मिलता है. ऐसे में ज़ोहरबी को संपत्ति में एक-चौथाई हिस्सा मिलेगा.

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