पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल.) की मूल शिक्षा

पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल.) की मूल शिक्षा

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
(अल्लाह दयावान, कृपाशील के नाम से)

प्रिय दर्शको,
सलाम और रहमत।

नबी करीम (सल्ल.) को सारे इंसानों के मार्गदर्शन यानी पैग़म्बरी के पद पर आसीन कर दिया। पैग़म्बरी मिलने के बाद भी आप (सल्ल.) कभी-कभी हिरा की गुफा की ओर जाते लेकिन अल्लाह आपको भावनात्मक रूप से उस महान दायित्व को निभाने के लिए तैयार कर रहा था, अतः कुछ दिनों तक वह्य (ईश-प्रकाशना) नहीं आई। आप (सल्ल.) नूर नामक पर्वत पर हिरा की गुफा की ओर बुलन्दियों तक चढ़कर जाते और फिर आप देखते कि कभी-कभी हज़रत जिब्रील अमीन प्रकट हो रहे हैं। वे कहते कि आप को इस बात का यक़ीन दिलाते कि आप अल्लाह के पैग़म्बर हैं। उस बड़ी ज़िम्मेदारी की कल्पना करके उस समय भी आप (सल्ल.) पर एक घबराहट की कैफ़ियत छा जाती। चुनाँचे आप (सल्ल.) घर जाते और घबराहट को कम करने के लिए चादर ओढ़ लेते।

ऐसी ही कैफ़ियत के समय सूरा-74 (अल-मुद्दस्सिर) की आरंभिक आयतें अवतरित हुईं —

يٰٓاَيُّہَا الْمُدَّثِّرُ قُـمْ فَاَنْذِرْوَرَبَّكَ فَكَبِّرْوَثِيَابَكَ فَطَہِرْ وَالرُّجْزَ فَاہْجُرْ وَلَا تَمْنُنْ تَسْتَكْثِرُ وَلِرَبِّكَ فَاصْبِرْ
“ऐ ओढ़ने लपेटनेवाले! उठो, और सावधान करने में लग जाओ। और अपने रब की बड़ाई बयान करो। अपने दामन को पाक रखो और गन्दगी से दूर ही रहो। अपनी कोशिशों को अधिक समझकर उसके क्रम को भंग न करो और अपने रब के लिए धैर्य से काम लो।” (क़ुरआन, 74/1-7)

धीरे-धीरे नबी (सल्ल.) को उस महान ज़िम्मेदारी को अदा करने के लिए तैयार किया जा रहा था, जो आपको सारी दुनिया के लोगों के सामने अदा करनी थी। अब देखिए कि इन आयतों में आप (सल्ल.) से क्या कहा जा रहा है, “ऐ ओढ़ने लपेटनेवाले! उठो, और सावधान करने में लग जाओ।” नबी का काम दुनिया के लोगों को सावधान करने का होता है, अल्लाह तआला के बारे में, उसकी महानता के बारे में, उसकी रचनात्मकता के बारे में, उसके उस संबंध के बारे में जो सृष्टि के साथ है और ज़मीन के साथ है और ज़मीन पर बसनेवाले लोगों के साथ है।

कहा जा रहा है, “उठो और सावधान करने में लग जाओ।” ये बुनियादी बातें हैं, ये वे बातें हैं जिनको अल्लाह तआला ही बता सकता है, विज्ञान नहीं बता सकता न संसार के दूसरे ज्ञान इसे बता सकते हैं। ये वे बातें हैं कि सृष्टि क्या है, रचयिता कौन है, रचना का रहस्य क्या है, रचना का उद्देश्य क्या है? अगरचे विभिन्न दार्शनिकों ने भी इसपर चिंतन-मनन किया है, लेकिन अकसर वे सही निष्कर्ष तक नहीं पहुँचे हैं। अल्लाह तआला इन बातों को जानता है जो सारे जगत् का रचयिता है और हमारा भी मालिक है। चुनाँचे ये बातें यहाँ पर याद दिलाई जा रही हैं।

“और अपने रब की बड़ाई बयान करो।” बड़ाई सारी सृष्टि में केवल अल्लाह के लिए है। इंसान बहुत बड़ा है, लेकिन सच्ची बात यह है कि सबसे बड़ा अल्लाह है और दुनिया की ज़िन्दगी में इसी बात का इम्तिहान है कि हम अल्लाह तआला की बड़ाई को, उसकी महानता को पहचानते कि नहीं पहचानते हैं। और जब पहचान लेते हैं तो अपने आपको उसके हवाले कर देते हैं या नहीं करते। दो ही चीज़ें हैं जिनका इम्तिहान हो रहा है। पहला गुप्त रचयिता को पहचान लेना, दूसरा, जब पहचान लिया तो अपने आपको उसके सिपुर्द कर देना और बिना ना-नुकुर किए उसका आज्ञापालन करना।

“ऐ ओढ़ लपेटकर लेटनेवाले। और अपने रब की बड़ाई बयान करो। और अपने कपड़े पाक रखो।” पाकी सफ़ाई पर बहुत ज़्यादा ज़ोर दिया गया है। अगर हम साफ़-सुथरे माहौल में रहें। पाक-साफ़ कपड़े पहनें, हमारे विचार भी साफ़-सुथरे रहेंगे और हम वह उच्च कोटि की सफ़ाई कर लेंगे जो हमारे विचारों में, भावनाओं में, हमारे कर्मों में और हमारी दुनिया में आनी चाहिए।

“और अपने रब की बड़ाई बयान करो। और अपने कपड़े पाक रखो। और गन्दगी से दूर रहो।” गन्दगी से अभिप्रेत यहाँ भौतिक गन्दगी भी है और वैचारिक गन्दगी भी है।

“और एहसान न करो ज़्यादा हासिल करने के लिए।”

एक नबी को अपनी बात को पेश करना है, एहसान का रवैया अपनाना है, लेकिन इसका मक़सद अल्लाह से अगर हासिल करना है। दीन (धर्म) काम एक ऐसा काम है, जिसपर अज्र (इनाम) अल्लाह ही देता है। चुनाँचे बहुत-से नबियों के बारे में क़ुरआन मजीद में आता है कि “मेरा इनाम तो बस अल्लाह तआला के पास है। मैं तुमसे किसी अज्र की उम्मीद नहीं रखता हूँ, कोई इनाम नहीं माँगता हूँ।”

“और अपने रब के लिए धैर्य से काम लो।”

यहाँ इस बात का भी इशारा है कि यह बहुत बड़ा काम है, दुनिया नहीं मानेगी, अल्लाह के विद्रोही लोग तुम्हारा विरोध करेंगे, तुम्हारी राहों में काँटे बिछाएँगे, तुम्हें बदनाम करेंगे। लेकिन तुम्हें कमर कस लेनी चाहिए और सारी दुनिया के अधर्मी और अल्लाह के विद्रोही लोगों और उनके विचारों, और उनके संगठनों और उनकी जीवन व्यवस्था का मुक़ाबला करने के लिए हर समय तैयार रहना चाहिए। इस तरीक़े से नबी (सल्ल.) को उस बड़े काम के लिए तैयार किया जा रहा था।

आज की बैठक में बस इतनी ही बात। इंशाअल्लाह आगे फिर आपसे मुलाक़ात होगी।

व आख़िरु दअवा-न अनिल्हम्दुलिल्लाहि रब्बिल-आलमीन।

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