हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के मुअज़्ज़िन बिलाल (रज़ि.)
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
(अल्लाह दयावान, कृपाशील के नाम से)
प्रिय दर्शको, आप सबको मेरा प्यार भरा सलाम।
हज़रत बिलाल (रज़ि.) हब्शा (इथोपिया) के रहनेवाले हब्शी अर्थात् अश्वेत नस्ल के थे। वह उमैया-बिन-ख़ल्फ़ के ग़ुलाम थे, जो मक्का का एक बड़ा सरदार था। आप जानते हैं कि आज पिछड़ों, ग़रीबों और दलितों के साथ किस प्रकार का दुर्व्यवहार किया जा रहा है, आप यह भी जानते होंगे कि आज दुनिया की सारी दौलत दुनिया के कुछ मुट्ठीभर पूँजीपतियों के हाथ में है और बाक़ी सारे के सारे लोग मज़दूर हैं। वही पॉलिसियाँ बनाते हैं, सरकारों को हज़ारों, लाखों बल्कि करोड़ों रुपये रिश्वत देते हैं, इसके बदले में सरकारें उनको हर प्रकार की सुविधाएँ देती चली जाती हैं।
मक्का एक व्यापारिक नगर था, वहाँ के लोग चीन तक से व्यापार करते थे, यमन, सीरिया, मिस्र और यहाँ तक कि वे रोम आदि तक से व्यापारिक संबंध रखते थे। ऐसे ही किसी व्यापारिक यात्रा में हज़रत बिलाल (रज़ि.) भी ग़ुलाम की हैसियत से मक्का आ गए थे। वे अगरचे काली नस्ल के थे, लेकिन उनका दिल साफ़ था इसलिए जब अल्लाह के रसूल (सल्ल.) का सन्देश उन तक पहुँचा तो उन्होंने उसे स्वीकार करने में देर नहीं लगाई।
बिलाल (रज़ि.) के इस्लाम स्वीकार करते ही उनके मालिक उमैया-बिन-ख़ल्फ़ का व्यवहार एकदम क्रूर हो गया। वह उनका खाना-पानी बन्द कर देता। यही नहीं, फिर जब भूख से उनका बुरा हाल हो रहा होता, ऐसे में उन्हें दोपहर की गर्म रेत में लिटा देता और उनके सीने पर एक भारी पत्थर रख देता और ऐसी ही हालत में ग़ुंडों और बदमाशों द्वारा उनको खींचा जाता। उमैया उनसे कहता, “मुहम्मद का साथ छोड़ दो, और ‘लात’ और ‘उज़्ज़ा’ को पूजो।” परन्तु इतने कष्ट सहने के बाद भी हज़रत बिलाल (रज़ि.) अपने संकल्प से पीछे न हटते। वे अधिक बात करने की स्थिति में न होते थे, ‘हुवल्लाहु अहद’ (अल्लाह एक है) के पूरे शब्द ज़बान से न निकाल पाते तो केवल “अहद, अहद,” (एक, एक) पुकारते रहते, मानो इस एक शब्द के द्वारा वे कह रहे हों, “अल्लाह एक है, वही अकेला माबूद है, कोई उसके सिवा इबादत के लायक़ नहीं है। उसी ने हमको पैदा किया और उसी की ओर हम सबको जाना है।”
हज़रत बिलाल (रज़ि.) पर उनके मालिक उमैया-बिन-ख़ल्फ़ को अत्याचार करते कई बार नबी (सल्ल.) ने भी देखा। ऐसे में आप (सल्ल.) बिलाल से कहते, “बिलाल, घबराओ नहीं! वह अल्लाह जिसको तुम ‘अहद, अहद’ कहकर पुकार रहे हो, वह जल्द ही तुम्हें इस मुसीबत से आज़ाद करेगा।”
नबी (सल्ल.) के सबसे क़रीबी दोस्त हज़रत अबू-बक्र सिद्दीक़ (रज़ि.) एक बार उधर से गुज़रे, जहाँ उमैया हज़रत बिलाल पर अत्याचार के पहाड़ तोड़ रहा था। हज़रत अबू-बक्र (रज़ि.) ने कहा, “उमैया! तुझे अल्लाह का ज़रा भी डर नहीं? क्या तू अल्लाह के इस बन्दे को मार ही डालेगा?”
इसके जवाब में उमैया बोला कि “तुम ही लोगों ने इसको बिगाड़ा है। तुम ही लोगों ने इन गिरे-पड़े लोगों के अन्दर यह साहस भर दिया है कि वे हमारी मर्ज़ी के बिना किसी दीन (धर्म) को क़ुबूल करते हैं। मेरी नज़र में यह विद्रोह है और हम इस विद्रोह को सहन नहीं कर सकते।”
हज़रत अबू-बक्र (रज़ि.) ने कहा, “उमैया, मेरे पास भी एक ग़ुलाम है, वह इससे ज़्यादा बलशाली है, तुम उसे ले लो और इसे मुझे दे दो। मैं इसे आज़ाद कर दूँगा।”
उमैया इस सौदे पर राज़ी हो गया और इस प्रकार हज़रत बिलाल (रज़ि.) को आज़ादी मिल गई। हज़रत अबू-बक्र (रज़ि.) के पिता जो बहुत बूढ़े थे, वे बोले, “बेटा, यह तुम क्या करते हो कि कमज़ोर से ग़ुलामों को ख़रीदकर उन्हें आज़ाद कर देते हो!? इससे तो अच्छा है कि तुम ज़रा बलशाली प्राकर के ग़ुलामों को ख़रीदकर आज़ाद करो, ताकि वे तुम्हारे समर्थक बनें, तुम्हारी स्थिति मज़बूत हो।” हज़रत अबू-बक्र (रज़ि.) के पिता अस्ल में उनका उद्देश्य समझ ही न सके थे।
अबू-बक्र (रज़ि.) ने कहा, “अब्बाजान! मेरा मक़सद तो बस अल्लाह तआला को ख़ुश करना है। मैंने कोई शक्ति और समर्थन प्राप्त करने के लिए इन्हें आज़ाद नहीं कराया।”
क़ुरआन मजीद की सूरा-92 अल-लैल, आयत-19, 20, 21 में अल्लाह तआला ने फ़रमाया, “और हाल यह है कि किसी का उसपर उपकार नहीं कि उसका बदला दिया जा रहा हो, बल्कि इससे अभीष्ट केवल उसके अपने उच्च रब के मुख (प्रसन्नता) की चाह है। और वह शीघ्र राज़ी हो जाएगा।”
इस आयत में यह इशारा अबू-बक्र (रज़ि.) की ओर है। मगर यह उनतक सीमित नहीं है, बल्कि जो लोग भी ऐसा नेक काम करते हैं, या करेंगे यह आयत उनपर भी चस्पाँ होगी। हमारी तमाम गतिविधियों का उद्देश्य भी यही होना चाहिए कि हमसे अल्लाह राज़ी हो जाए।
जैसा कि क़ुरआन की आयत से भी स्पष्ट हो रहा है कि हज़रत बिलाल (रज़ि.) का अबू-बक्र सिद्दीक़ (रज़ि.) पर कोई एहसान नहीं था। उन्होंने तो केवल उनके इस्लाम स्वीकार कर लेने से प्रभावित होकर और अल्लाह की ख़ुशी के लिए उनकी आज़ादी का प्रबंध किया। इसलिए अल्लाह ने फ़रमाया,“उसे तो बस अपने उच्च रब की प्रसन्नता प्राप्त करनी है। और वह निश्चय ही उससे ख़ुश होगा।”
अल्लाह तआला ऐसे तमाम लोगों से ख़ुश होगा, पैग़म्बरों से ख़ुश होगा, हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) से ख़ुश होगा, अबू-बक्र सिद्दीक़ (रज़ि.) से ख़ुश होगा, जिन्होंने अपनी दौलत, अपनी ताक़त, अपनी सत्ता सब कुछ अल्लाह के रास्ते में लगा दिया।
मेरी ज़िन्दगी का मक़सद तेरे दीं की सरफ़राज़ी
मैं इसी लिए मुसलमाँ मैं इसी लिए नमाज़ी
आज के इस ख़तरों से भरे दौर में भी मुश्किलों के साथ आसानियाँ भी हैं। हमें मज़बूती के साथ अल्लाह तआला का दामन थामकर उन सब लोगों का साथ देना चाहिए जो दबे-कुचले और पिछड़े हुए हैं, मबूर हैं, सताए हुए हैं। जिन लोगों की आँखों पर पट्टियाँ बँधी हैं, जो सत्य को नहीं पहचानते, उन तक हमें बहुत अच्छे ढंग से अल्लाह का सन्देश पहुँचाना चाहिए।
व आख़िरु दअवा-न अनिल्हम्दुलिल्लाहि रब्बिल-आलमीन।