नई दिल्ली: जमाअत-ए-इस्लामी हिन्द (JIH) के मुख्यालय में 6 से 10 नवम्बर 2025 तक उलेमा और मदरसा स्नातकों के लिए एक कार्यशाला आयोजित की गई. इस कार्यशाला की विशेषता यह थी कि इसमें भाग लेने वाले विद्वान विभिन्न विचारधाराओं और धार्मिक संगठनों से सम्बंधित थे, और उन्होंने अलग-अलग दीनि मदरसों तथा जामियाओं से शिक्षा प्राप्त की थी. इस कार्यशाला में देश के लगभग सभी राज्यों से 120 उलेमा ने इसमें भाग लिया.
‘फिरकापरस्ती से ऊपर उठना होगा’
कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में विभिन्न विचारधाराओं से सम्बंधित प्रमुख व्यक्तित्वों को अपने विचार व्यक्त करने के लिए आमंत्रित किया गया. इस अवसर पर जमाअत-ए-इस्लामी हिन्द के उपाध्यक्ष मौलाना वलीउल्लाह सईदी फलाही ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि उलेमा को फिरकापरस्ती और विचारधारात्मक मतभेदों से ऊपर उठकर एकता और सहयोग की भावना से आगे बढ़ना चाहिए.
जमाअत-ए-इस्लामी हिन्द के शरीयत काउंसिल के सचिव डॉ. मोहम्मद राजीउल इस्लाम नदवी ने कार्यशाला के उद्देश्यों और लक्ष्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य सम्मानित उलेमा को उनकी जिम्मेदारियों की याद दिलाना और उन्हें मिल-जुलकर काम करने के लिए प्रेरित करना है.
पांच दिवसीय कार्यशाला के दौरान उद्घाटन और समापन सत्रों के अतिरिक्त 12 सत्र आयोजित किए गए जिनमें 21 विषयों पर चर्चा हुई. इन विषयों में देश की परिस्थितियां, उम्मत-ए-मुस्लिम की समस्याएं और उलेमा की जिम्मेदारियां शामिल थी. इन सत्रों में वक्ताओं में जमाअत-ए-इस्लामी हिन्द के अध्यक्ष सैयद सदातुल्लाह हुसैनी, जमाअत के अन्य उपाध्यक्षों और देश के बौद्धिक एवं धार्मिक व्यक्तित्वों ने भाग लिया.
समापन सत्र का एक महत्वपूर्ण भाग ओपन सेशन था, जिसमें सभी प्रतिभागियों को कार्यशाला के भाषणों या जमाअत-ए-इस्लामी हिन्द से सम्बंधित विषयों पर अपने प्रश्न और विचार प्रस्तुत करने का अवसर दिया गया. जमाअत के पदाधिकारियों ने उनके प्रश्नों के उत्तर दिए.

कार्यशाला का समापन सैयद सदातुल्लाह हुसैनी के प्रेरणादायक संबोधन से हुआ. उन्होंने सम्मानित उलेमा को उनके मुक़ाम और जिम्मेदारियो की याद दिलाई. उन्होंने कहा कि उम्मत की वास्तविक निर्माण और इस्लामी गठन केवल कलिमा तैय्यिबा के माध्यम से संभव है, और यही कलिमा दावत और इस्लाह की बुनियाद है। उन्होंने उलेमा के सामने छह मूलभूत बिंदु रखे.
1. इस्लाम जीवन के हर क्षेत्र में पूर्ण मार्गदर्शन प्रदान करता है.
2. उलेमा को उन विषयों पर विशेष ध्यान देना चाहिए जिन पर समाज का ध्यान कम रहता है.
3. फिकही और इल्मी चर्चाओं में संयम और समकालीन समझ बनाए रखनी चाहिए.
4. झूठी विचारधाराओं के हमलों से अवगत रहना और बौद्धिक प्रतिरक्षा की क्षमता विकसित करनी चाहिए.
5. आधुनिक तकनीक के माध्यम से दावत और इस्लाह की कला सीखनी चाहिए.
6. परिस्थितियों का आकलन संयम और दूरअंदेशी के साथ करना चाहिए.
उन्होंने कहा कि आज के दौर में एक प्रभावशाली और मध्यम मार्ग पर चलने वाली उलेमा की टीम तैयार करने की आवश्यकता है, जो देश को बौद्धिक और व्यावहारिक मार्गदर्शन प्रदान कर सके.

