पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल.) – सम्पूर्ण मानवजाति के लिए ईशदूत
प्रिय दर्शको,
आज की इस बैठक में मुहम्मद (सल्ल.) के उन पलों की चर्चा की जाएगी जब आपको नबी बना दिया गया था। यह बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी थी। पूरी मानवजाति में किसी पर इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी आज तक नहीं डाली गई, जो अल्लाह ने अपने पैग़म्बरों पर डाली। उनमें सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी थी हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) की, क्योंकि आपसे पहले जो पैग़म्बर आए थे, वे किसी विशिष्ट स्थान के लिए होते थे, किसी क्षेत्र के लिए होते थे और किसी काल के लिए होते थे। लेकिन हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) को सारे संसार के मार्गदर्शन का दायित्व सौंपा गया।
وَمَآ أَرْسَلْنَٰكَ إِلَّا كَآفَّةً لِّلنَّاسِ بَشِيرًا وَّنَذِيرًا
“हमने तो तुम्हें सारे ही मनुष्यों को शुभ-सूचना देनेवाला और सावधान करनेवाला बनाकर भेजा है,” (क़ुरआन, 34/28)
चुनाँचे क़ियामत तक जितने लोग इस दुनिया में आते रहेंगे, नबी (सल्ल.) उनके पैग़म्बर हैं, उनके मार्गदर्शक हैं। आज से साढ़े चौदह सौ साल पहले नबी करीम (सल्ल.) के ज़माने में दुनिया की आबादी लगभग 18-20 करोड़ रही होगी। 1650 ई. में दुनिया की आबादी बढ़कर 50 करोड़ तक पहुँची और 1800 या 1810 ई. के लगभग दुनिया की आबादी 100 करोड़ हुई और 1930 में दुनिया की आबादी 200 करोड़ हुई। इस वक़्त दुनिया की आबादी 780 करोड़ के लगभग है। अनुमान है कि अभी दुनिया की आबादी बढ़ते-बढ़ते 1000 करोड़ तक पहुँचेगी और फिर नहीं बढ़ेगी, ऐसे अनुमान हैं सांख्यिकीविदों और जनसंख्या विशेषज्ञों के।
इन सारे इंसानों और क़ियामत तक जितने इंसान पैदा होंगे, उन सबके मार्गदर्शन की ज़िम्मेदारी नबी (सल्ल.) को दी गई। यह एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी थी। और आप (सल्ल.) की परेशानी बिलकुल उचित थी कि ‘मैं इतने बड़े काम को कैसे पूरा कर सकूँगा? मेरे पास साधन-संसाधन नहीं हैं, मुझे मार्गदर्शन का थोड़ा सा हिस्सा ही मिला है और फिर सारी दुनिया मेरा विरोध करेगी। अज्ञानता के इस अंधेरे को मैं कैसे दूर कर सकूँगा?’
चुनाँचे आप परेशान होकर घर आए। आपकी पत्नी हज़रत ख़दीजा (रज़ि.), जिन्होंने आप (सल्ल.) को हर प्रकार से सहयोग किया था। आप (सल्ल.) ने कहा कि “ज़म्मिलूनी! ज़म्मिलूनी!!” (मुझे ओढ़ादो, मुझे ओढ़ादो)
हज़रत ख़दीजा (रज़ि.) चकित थीं कि आज इन्हें क्या हो गया? आज इनका हाल ऐसा क्यों है? आज ये इतने घबराए हुए क्यों हैं? उन्होंने कहा, “मेरे माँ-बाप आपपर क़ुरबान, आख़िर आपको क्या हो गया है?”
आप (सल्ल.) ने सारी घटना सुना दी। जब नबी (सल्ल.) की हालत कुछ सहज हुई तो हज़रत ख़दीजा (रज़ि.) ने कहा, “आप घबराएँ नहीं। अल्लाह तआला आपकी मदद करेगा।” उन्होंने कहा, “मेरे चचा के बेटे, ख़ुश हो जाइए, जो कुछ कर रहे हैं, करते रहिए। उस सत्ता की क़सम जिसके हाथ में ख़दीजा की जान है, रजो कुछ आपने देखा है, उसमें घबराने की कोई बात नहीं है। आप इस उम्मत (अनुयायी समाज) के नबी न होंगे तो और कौन होगा?”
फिर उन्होंने जा बात कही, उसपर हमें ग़ौर करना चाहिए। हज़रत ख़दीजा (रज़ि.) ने कहा, “आप हमेशा सच बोलते हैं, रिश्तेदारों का ख़याल रखते हैं, आप अमीन हैं, अमानतें अदा करते हैं, मजबूरों और बेबसों को सहारा देते हैं, ग़रीबों और निर्धनों का सत्कार करते हैं, सच्चाई और हक़ के कामों में लोगों की मदद करते हैं, अल्लाह आपको हरगिज़ बर्बाद न करेगा।”
ये शब्द बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। इससे नबी (सल्ल.) को कुछ थोड़ी सी हिम्मत हासिल हुई। सबसे पहले जिस व्यक्ति ने आप (सल्ल.) को नबी के रूप में स्वीकार किया वह कोई मर्द नहीं, बल्कि एक औरत, यानी आप (सल्ल.) की पत्नी हज़रत ख़दीजा (रज़ि.) थीं।
किसी ने सही कहा है—
“Behind every successful person, there stands a woman.”
“हर सफल व्यक्ति के पीछे एक औरत खड़ी होती है।”
इसी लिए अल्लाह तआला ने इंसान को स्त्री और पुरुष के रूप में पैदा किया है कि पति पत्नी के लिए लिबास, और पत्नी पति के लिए लिबास, और एक-दूसरे के जीवन-साथी होते हैं। एक-दूसरे को सहयोग करते हैं।
दुरूद और सलाम हो नबी करीम (सल्ल.) पर और अल्लाह की बेइंतहा रहमतें हों हज़रत ख़दीजा पर जिन्होंने आगे बढ़कर आप (सल्ल.) का हाथ थामा और आप (सल्ल.) की पैग़म्बरी की गवाही दी और अपना धन और माल नबी (सल्ल.) और उस सन्देश पर लुटा दिया, जिसको लेकर आप आए थे।
व आख़िरु दअवा-न अनिल्हम्दुलिल्लाहि रब्बिल-आलमीन।