पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) का उत्साह-वर्धन
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
(अल्लाह दयावान, कृपाशील के नाम से)
प्रिय दर्शको,
हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) को जो पैग़म्बर बनाया गया, उसके आरंभिक काल की यह घटना है। नबी (सल्ल.) को यह चिंता थी कि अल्लाह की ओर से वह्य (प्रकाशना) आने का सिलसिला रुक क्यों गया है। बात यह थी कि अल्लाह तआला आपको शक्ति दे रहा था कि आप स्वयं को सहज कर सकें। इस आरंभिक समय में कुछ समय बाद सूरा-93 अज़-ज़ुहा अवतरित हुई —
وَالضُّحٰى۱ۙ وَالَّيْلِ اِذَا سَـجٰى۲ۙ مَا وَدَّعَكَ رَبُّكَ وَمَا قَلٰى۳ۭ وَلَلْاٰخِرَۃُ خَيْرٌ لَّكَ مِنَ الْاُوْلٰى۴ۭ وَلَسَوْفَ يُعْطِيْكَ رَبُّكَ فَتَرْضٰى۵ۭ اَلَمْ يَجِدْكَ يَتِيْمًـا فَاٰوٰى۶۠ وَوَجَدَكَ ضَاۗلًّا فَہَدٰى۷۠ وَوَجَدَكَ عَاۗىِٕلًا فَاَغْنٰى۸ۭ فَاَمَّا الْيَتِيْمَ فَلَا تَقْہَرْ۹ۭ وَاَمَّا السَّاۗىِٕلَ فَلَا تَنْہَرْ۱۰ۭ وَاَمَّا بِنِعْمَۃِ رَبِّكَ فَحَدِّثْ۱۱ۧ
“साक्षी है चढ़ता दिन, और रात जबकि उनका सन्नाटा छा जाए। तुम्हारे रब ने तुम्हें न तो विदा किया और न वह बेज़ार (अप्रसन्न) हुआ। और निश्चय ही बाद में आनेवाली (अवधि) तुम्हारे लिए पहलेवाली से उत्तम है। और शीघ्र ही तुम्हारा रब तुम्हें प्रदान करेगा कि तुम प्रसन्न हो जाओगे। क्या ऐसा नहीं है कि उसने तुम्हें अनाथ पाया तो ठिकाना दिया? और तुम्हें मार्ग से अपरिचित पाया तो मार्ग दिखाया? और तुम्हें निर्धन पाया तो समृद्ध कर दिया? अतः जो अनाथ हो उसे मत दबाना, और जो माँगता हो उसे न झिड़कना, और जो तुम्हारे रब की अनुकम्पा है, उसे बयान करते रहो।” (क़ुरआन, 93/1-11)
यह शुरू-शुरू में आप (सल्ल.) के दिल को मज़बूत करने के लिए, आपकी हिम्मत को बढ़ाने के लिए इसमें कुछ बातें कही गई हैं।
“साक्षी है चढ़ता दिन, और रात जबकि उनका सन्नाटा छा जाए……” दुनिया में हम देखते हैं कि दिन होता है, धूप होती है, गर्मी भी होती है, उसमें कठिनाइयाँ भी होती हैं, उसके बाद ज़रूरी होता है कि रात की शान्ति हम पर छा जाए। और रात आराम करने और नींद के लिए और थकन दूर करने के लिए होती है। चुनाँचे इसके द्वारा अल्लाह तआला आप (सल्ल.) के बता रहा है कि जिस प्रकार प्रकाशमान दिन के बाद शान्ति पाने के लिए अल्लाह रात को छा देता है, उसी तरह अल्लाह तआला एक बड़े काम की ज़िम्मेदारी आप (सल्ल.) पर डालने के बाद अब आपको थोड़ा सुकून दे रहा है। अब उसके बाद फिर कहा जा रहा है—
“…..(ऐ नबी), तुम्हारे रब ने तुम्हें न तो विदा किया और न वह बेज़ार (अप्रसन्न) हुआ…..” नबी से नाराज़ होने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता। उसके बाद कहा जा रहा है—
“…..और निश्चय ही बाद में आनेवाली (अवधि) तुम्हारे लिए पहलेवाली से उत्तम है…..”
और यह नबी (सल्ल.) के साथ हुआ, हर बाद का आनेवाला दौर बेहतर से बेहतर होता चला गया। आप (सल्ल.) का सन्देश आगे बढ़ता और फैलता गया। बल्कि आप (सल्ल.) के अनुयायी समूह का हाल भी देखिए। यह अनुयायी समूह पहले कितना कमज़ोर था, मक्का में आप (सल्ल.) की आवाज़ कितनी कमज़ोर थी, लेकिन धीरे-धीरे आपको ताक़त मिलती चली गई। आप (सल्ल.) को मजबूर और परेशान होकर मदीना जाना पड़ा था, आपको अपना घर-बार छोड़ना पड़ा था और फिर 100 वर्ष के अन्दर-अन्दर इस्लाम सारी की सारी दुनिया में फैल गया। अल्लाह पर ईमान (विश्वास) रखनेवालों को कभी निराश नहीं होना चाहिए। ये आज़माइशें और मुश्किलें इसलिए आती हैं कि हमको मज़बूत किया जाए। नबी (सल्ल.) से लगभग 1500 वर्ष के बाद आज भी मुश्किलें और मुसीबतें आती हैं। इन्हीं मुश्किलों और परेशानियों के द्वारा समाज मज़बूत होता और आगे बढ़ता है। फिर कहा गया—
“….और शीघ्र ही तुम्हारा रब तुम्हें प्रदान करेगा कि तुम प्रसन्न हो जाओगे…..”
अल्लाह तआला ने आप (सल्ल.) को ताक़त दी, अनुयायी दिए, मान-सम्मान दिया, ख्याति दी, और फिर उसके बाद सौ वर्ष के अन्दर-अन्दर अल्लाह तआला का सन्देश सारी दुनिया में फैल गया। और आप (सल्ल.) ने यह भी फ़रमाया कि क़ियामत के आने से पहले-पहले फिर एक दौर आएगा जबकि इस्लाम फिर बुलन्दियों पर पहुँचेगा, लोग सत्य को समझ जाएँगे, आप (सल्ल.) के अनुयायी समुदाय को दोबारा मान-सम्मान प्राप्त होगा। अल्लाह तआला इसके लिए उदाहरण दे रहा है—
“…..क्या ऐसा नहीं है कि उसने तुम्हें अनाथ पाया तो ठिकाना दिया…..?”
देखिए, नबी (सल्ल.) के जन्म से पहले ही आपके पिता का देहांत हो गया। छः साल के थे कि माँ का देहांत हो गया। आठ साल के थे कि दादा का भी देहांत हो गया। इसके बावजूद अल्लाह तआला आपका संरक्षण करता रहा।
“….और तुम्हें मार्ग से अपरिचित पाया तो मार्ग दिखाया…..?”
नबी (सल्ल.) को मालूम नहीं था कि नुबूवत (पैग़म्बरी) क्या होती है, मार्गदर्शन क्या होता है, सत्यमार्ग क्या है। आप (सल्ल.) तो बुतपरस्ती के वातावरण में पैदा हुए थे। वहाँ पर पढ़े-लिखे लोग भी नहीं थे, थे भी तो इक्का-दुक्का लोग। लेकिन अल्लाह तआला ने आपको दुनिया के नेतृत्व, दुनिया के मार्गदर्शन के पद पर नियुक्त किया और सारी की सारी बातें आपपर स्पष्ट कर दीं। आपने सभ्यता एवं संस्कृति, रहन-सहन, मानव जीवन, अर्थव्यवस्था, सामाजिकता और राजनीति आदि के वे सिद्धांत निर्धारित किए कि उनका कोई जवाब नहीं। उसके बाद कहा जा रहा है—
“….और तुम्हें निर्धन पाया तो समृद्ध कर दिया….?”
इस प्रकार से अल्लाह तआला आपके हर दौर को अगले दौर से बेहतर बनाएगा। यह आप (सल्ल.) को सन्तुष्ट करने के लिए सूरा ज़ुहा आप (सल्ल.) के सन्देश के आरंभिक समय में अवतरित की गई थी। अल्लाह तआला हमें इस सूरा को बहुत महत्व देने, इससे मार्गदर्शन प्राप्त करने और मुश्किलों और मुसीबतों के तूफ़ान में अल्लाह का दामन मज़बूती के साथ थामने का सौभाग्य प्रदान करे। आमीन, या रब्बल आलमीन।
व आख़िरु दअवा-न अनिल्हम्दुलिल्लाहि रब्बिल-आलमीन।