नई दिल्ली: दिल्ली पुलिस द्वारा 2019 के जामिया हिंसा मामले में शरजील इमाम सहित 11 आरोपियों को आरोप मुक्त करने के साकेत कोर्ट के 4 फरवरी के आदेश को चुनौती देने के मद्देनजर सोमवार को उच्च न्यायालय ने कहा कि इसका आगे की जांच पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा
न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा, चूंकि आगे की जांच की जाएगी, जांच एजेंसी के खिलाफ की गई टिप्पणियों से न तो आगे की जांच न ही किसी आरोपी की सुनवाई प्रभावित होगी।
न्यायमूर्ति शर्मा ने मामले को 16 मार्च को जारी रखने के लिए सूचीबद्ध करते हुए, पुलिस और प्रतिवादियों को मामले में लिखित प्रस्तुतियां और संबंधित केस कानून दर्ज करने की स्वतंत्रता दी।
दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व करते हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) संजय जैन ने कहा कि केवल परीक्षण के माध्यम से यह तय करना उचित होगा कि 4 फरवरी के आदेश में आरोपमुक्त किए गए अभियुक्त केवल तमाशबीन थे और हिंसा में उनकी कोई भूमिका नहीं थी।
उन्होंने तर्क दिया: विरोध के हिस्से में उनकी भूमिका मूक, शांतिपूर्ण या हिंसक थी या नहीं, यह परीक्षण में सामने आएगा। या क्या इसे आरोप के स्तर पर पहले से आंका जाएगा?
जेएनयू के पूर्व छात्र शारजील इमाम, आसिफ इकबाल तन्हा और नौ अन्य को आरोपमुक्त करने के आदेश में असहमति के अधिकार को बनाए रखने के अदालत के कर्तव्य के बारे में ट्रायल कोर्ट की टिप्पणियों की आलोचना करते हुए एएसजी ने कहा कि इस मामले में असहमति का कोई पहलू शामिल नहीं है, लेकिन यह एक साधारण सवाल है।
अदालत से नोटिस जारी करने के लिए कहते हुए एएसजी ने अदालत से अंतरिम आदेश पारित करने की मांग की कि ट्रायल कोर्ट के आदेश से मोहम्मद इलियास के खिलाफ चल रहे मुकदमे पर असर नहीं पड़ना चाहिए, क्योंकि अदालत ने उनके खिलाफ आरोप तय करने के लिए पर्याप्त सबूत पाए थे।
एएसजी की दलील को झूठा बताते हुए तन्हा की ओर से पेश अधिवक्ता सौजन्या शंकरन ने कहा, यह सुझाव देना गलत है कि तीसरी पूरक चार्जशीट पर विचार नहीं किया गया था।
तन्हा के वकील ने तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट ने विरोध प्रदर्शनों में मात्र उपस्थिति के कानून पर विचार किया है और ट्रायल कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों में कोई त्रुटि नहीं है।
एएसजी की दलीलों पर सहमति जताते हुए अदालत ने कहा कि वह इस स्तर पर टिप्पणियों को नहीं हटाएगा।
न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा, मैं जांच में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। मैं डिजीटल रूप में टीसीआर की मांग कर रहा हूं। मुझे केस डायरी की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैं इसे डिस्चार्ज के खिलाफ सुन रहा हूं, बरी होने के खिलाफ नहीं।
एएसजी ने साकेत कोर्ट कॉम्प्लेक्स के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, अरुल वर्मा की टिप्पणियों के बारे में भी तर्क दिया, जिन्होंने पुलिस की खिंचाई की थी और कहा था कि पुलिस वास्तविक अपराधियों को पकड़ने में असमर्थ थी और इन 11 आरोपियों को बलि का बकरा बना दिया।
—आईएएनएस