नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद और श्रृंगार गौरी केस में नया मोड़ आया है. जिला जज की अदालत में सुनवाई से पहले मुस्लिम पक्ष ने अपील की है. मुस्लिम पक्ष ने अदालत से आठ हफ्ते का समय मांगा है. 22 सितंबर से जिला जज की अदालत में ट्रायल शुरू होगा. लेकिन इससे पहले मुस्लिम पक्ष ने समय की मांग की है और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दिया है.
एनडीटीवी की खबर के मुताबिक, केस की पोषनीयता को लेकर जिला जज की अदालत ने 12 सितंबर को फैसला सुनाया था. दरअसल, वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर स्थित श्रृंगार गौरी के नियमित दर्शन-पूजन की मांग को लेकर दायर याचिका को वाराणसी की कोर्ट ने सुनवाई के योग्य माना है. वाराणसी की जिला अदालत ने हिन्दुओं के पक्ष में फैसला दिया है. अदालत ने कहा कि इस मामले पर सुनवाई में कोई बाधा नहीं है.
अदालत ने कहा कि याचिका पक्ष के वकील की तरफ से संपत्ति पर घोषणा या निषेधाज्ञा की मांग नहीं की गयी है. उन्होंने पूजा स्थल को मस्जिद से मंदिर में बदलने के लिए राहत की मांग भी नहीं की है. वादी केवल श्रृंगार गौरी और अन्य देवताओं की पूजा करने के अधिकार की मांग कर रहे हैं, जिनकी पूजा 1993 तक और 1993 के बाद से अब तक उत्तर प्रदेश राज्य के नियमन के तहत वर्ष में एक बार की जा रही थी. इसलिए, उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 वादी के मांग पर प्रतिबंध के रूप में कार्य नहीं करता है.
याचिकाकर्ता की तरफ से दायर मुकदमा नागरिक अधिकार, मौलिक अधिकार के साथ-साथ परंपरागत और धार्मिक अधिकार के रूप में पूजा के अधिकार तक सीमित है और अदालत इससे सहमत है.
वहीं मुस्लिम पक्ष द्वारा रखे गए तर्क पर अदालत ने कहा कि इनकी तरफ से रखी गयी बातें वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 85 द्वारा वर्जित है क्योंकि वाद का विषय वक्फ संपत्ति है और केवल वक्फ न्यायाधिकरण लखनऊ को ही मामले पर निर्णय करने का अधिकार है.
लेकिन वक्फ अधिनियम के 54, 61, 64, 67, 72 और 73 के तहत इसके अधिकार क्षेत्र पर रोक नहीं लगाता है. इसलिए, वर्तमान मुकदमे पर विचार करने के लिए इस अदालत के अधिकार क्षेत्र पर रोक नहीं है. इसलिए, वादी का मुकदमा वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 85 द्वारा वर्जित नहीं है.